Cricket Legends: भारतीय टेस्ट क्रिकेट का इतिहास कई गौरवशाली पलों से भरा पड़ा है, लेकिन अगर बात चौथी पारी में बड़े लक्ष्य का पीछा करने की हो, तो यह हमेशा से एक असली परीक्षा रही है।
सचिन तेंदुलकर के 2013 में संन्यास लेने से पहले भारत इस चुनौती को अक्सर पार करता था। मगर उनके जाने के बाद जैसे भारतीय टीम से वह आत्मविश्वास और अनुभव कहीं खो गया हो।
गौर कीजिए – तेंदुलकर के संन्यास के बाद भारत ने केवल एक बार 200+ रन का लक्ष्य सफलतापूर्वक पीछा किया है, और वो भी 2021 में गाबा टेस्ट के दौरान।
200+ रन के चेज़ में गिरावट – एक गंभीर संकेत
2001 से 2013 के बीच भारत को चौथी पारी में 35 बार 200+ रन का लक्ष्य मिला, जिनमें से टीम ने 9 मैच जीत लिए — इस अवधि में किसी भी टीम से ज्यादा। इन 9 जीतों में से 8 बार सचिन तेंदुलकर टीम का हिस्सा थे, और उन्होंने 444 रन बनाए औसत 88.8 के साथ, जिसमें एक शतक और चार अर्धशतक शामिल थे।
उसी के मुकाबले, 2013 से अब तक भारत को 22 बार 200+ का लक्ष्य मिला, और सिर्फ़ 1 बार जीत हासिल की — ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिस्बेन में 328 रन का पीछा। सफलता दर? सिर्फ 4.5%, जो टॉप 9 टेस्ट टीमों में आठवें नंबर पर है।
क्या वाकई विराट कोहली की कमी खल रही है?
पूर्व इंग्लिश तेज़ गेंदबाज़ स्टीव हार्मिसन ने हाल ही में कहा कि भारत में विराट कोहली जैसा नेतृत्व करने वाला खिलाड़ी नहीं है, जो चौथी पारी में मैच जिता सके। उन्होंने कहा,
“इस मामले में विराट कोहली अद्भुत थे। वह चौथी पारी में उतरते और मैच खत्म करके आते।”
हालांकि, कोहली का चौथी पारी में रिकॉर्ड ज्यादा प्रभावशाली नहीं रहा है। उन्होंने 200+ रन के चेज़ में सिर्फ़ 9 बार बल्लेबाज़ी की, और 208 रन बनाए, औसत 41.60 का, सिर्फ़ एक अर्धशतक के साथ।
यानी असल में, भारत को कोहली की नहीं, तेंदुलकर जैसे धैर्य और क्लास वाले बल्लेबाज़ की ज़रूरत रही है।
आंकड़े जो असलियत बताते हैं
- 2001-2013: भारत का चौथी पारी में टीम औसत था 31.30 (53 टेस्ट में)
- 2013-2024: वही औसत गिरकर रह गया है 23.46 पर — जो सभी प्रमुख टीमों में सबसे कम है
- इस दौरान, इंग्लैंड ने 9 बार 200+ का चेज़ किया, जबकि भारत ने केवल 1 बार
इससे साफ़ है कि भारत चौथी पारी की चुनौती में पिछड़ता जा रहा है, जबकि इंग्लैंड जैसे देश ‘बाज़बॉल’ एप्रोच अपनाकर आक्रामक तरीके से लक्ष्य का पीछा कर रहे हैं।
मौके जहां भारत चूक गया
भारत कई बार जीत के करीब पहुंचा, लेकिन अंत में नतीजा हाथ से निकल गया:
- 2014 बनाम न्यूज़ीलैंड – 407 रन के लक्ष्य में भारत सिर्फ 40 रन से हारा
- 2014 एडिलेड टेस्ट – कोहली ने 141 बनाए, लेकिन जीत न मिली
- 2022 बनाम दक्षिण अफ्रीका – दो बार छोटे लक्ष्य चेज़ में हार
इसमें कहीं ना कहीं टीम की रणनीति, टॉप ऑर्डर की नाकामी, और मानसिक दबाव में प्रदर्शन का मुद्दा सामने आता है।
इंग्लैंड की हिम्मत बनाम भारत की हिचक
हार्मिसन की बात पूरी तरह गलत नहीं है। इंग्लैंड ने हाल के वर्षों में बड़े चेज़ में जो विश्वास दिखाया है, वह भारत में नज़र नहीं आता। स्टोक्स और मैकुलम की जोड़ी ने चौथी पारी को जीतने का तरीका बदल दिया है।
भारत अब भी पुराने ढर्रे पर खेलता दिखता है — न आक्रामक है, न ही पूरी तरह रक्षात्मक। टीम को चाहिए एक नया टेम्पलेट, एक नया आत्मविश्वास।
निष्कर्ष: क्या कोई नया तेंदुलकर सामने आएगा?
11 साल बीत चुके हैं सचिन तेंदुलकर के संन्यास को, लेकिन भारत अब भी चौथी पारी में उसी स्थिरता, संयम और समझदारी की तलाश में है। कोहली, पुजारा, रहाणे, और अब शुभमन गिल जैसे नाम तो हैं, लेकिन एक फिनिशर, एक मास्टर क्लास खिलाड़ी जो मुश्किल समय में टीम को उबार सके — वो अभी तक नहीं उभरा।
अगर भारत को फिर से 200+ रन के चेज़ में सफलता पानी है, तो उसे सिर्फ तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि मानसिक बदलाव की ज़रूरत है। जब तक वो नहीं होगा, तब तक हर चौथी पारी एक डरावना सपना बनी रहेगी।
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